डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जीवनी – Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Biography in Hindi, शिक्षा, वैवाहिक जीवन, अध्यापन कार्य, राजनितिक जीवन, पुरस्कार, पुस्तके, मृत्यु

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डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan) एक महान विचारक, प्रख्यात शिक्षाविद, भारत रत्न एवं अन्य कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से अलंकृत थे। उनकी प्रतिभा की गहराई का पता तो इससे चलता है, की महज 21  वर्ष की उम्र में 37 रूपये के वेतन पर उन्होंने मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज में दर्शन शास्त्र पढ़ाना शुरू कर दिया था।

Sarvepalli Radhakrishnan देश के सर्वोच्च शिक्षकों में से एक थे, एक ओर जहाँ वे इतने कम उम्र में दर्शन शास्त्र के अच्छे ज्ञाता थे , साथ ही तेज स्मरण शक्ति एवं शब्दों के अतुल्य भंडार उनकी विशेषता थी । वे भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति, द्वितीय राष्ट्रपति, एवं एक कुशल राजनयिक के तौर पर सोवियत संघ में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर चुके थे। भारतीय राष्ट्रपति के तौर पर उनका कार्यकाल भारतीय लोकतंत्र के लिए सबसे कठिन दौर था, उन्होंने दो भारतीय प्रधानमंत्रियों की मृत्यु देखी और दो कार्यवाहक प्रधानमंत्रियों को शपथ दिलाई।

Sarvepalli Radhakrishnan
Sarvepalli Radhakrishnan
जीवन परिचय बिंदु राधाकृष्णन जीवन परिचय
पूरा नामडॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन
धर्महिन्दू
जन्म5 सितम्बर 1888
जन्म स्थानतिरुमनी गाँव, मद्रास
माता-पितासिताम्मा, सर्वपल्ली विरास्वामी
विवाहसिवाकमु (1904)
बच्चे5 बेटी, 1 बेटा

उन्हीं के कार्यकाल में भारत को पाकिस्तान और चीन दोनों से युद्ध करने परे थे। पंडित नेहरू का कहना था की वे राज्यसभा के कुशल सभापति थे। पक्ष हो या विपक्ष वे हमेशा अपनी तर्कशक्ति और समझदारी से वे माहौल को संभाल लेते थे।

Sarvepalli Radhakrishnan एक सादा जीवन व्यतीत करने वाले विचारों के धनी व्यक्तित्व थे। उन्होंने  शिक्षक जीवन के साथ साथ एक सामान्य भारतीय के जीवन को परिभाषित किया है। हम उनके इस मर्यादापूर्ण जीवन से बहुत कुछ सीख सकते हैं।

Sarvepalli Radhakrishnan भारतीय संस्कृति एवं हिन्दू धर्म के आस्थावान विचारक थे। स्वामी विवेकानंद और वीर सावरकर को अपना आदर्श मानने वाले राधाकृष्णन भारतीय संस्कृति के गहन अध्यन कर पश्चिमी देशों में इस संस्कृति की छाप छोड़ने वाले भारत माता के एक सच्चे सेवक थे।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जन्म एवं बाल्यकाल – Date of Birth Dr. Sarvepalli Radhakrishnan (DOB)


भारत रत्न विभूषित, टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मान्नित , सर की उपाधि ग्रहण करने वाले इन महान आत्मा का जन्म तमिलनाडु के तिरुतनी गांव में 5 सितम्बर  को हुआ था। इनके जन्म दिवस को पुरे आर्यावर्त में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। इनका जन्मस्थल भी एक तीर्थ के रूप में विख्यात है। आधुनिक मद्रास से तिरुतनी गांव की दुरी लगभग ६० कि.मी है।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan) का जन्म जिस परिवार में हुआ था वो एक ब्राम्हण परिवार था, जिसका मूल ग्राम सर्वपल्ली था। ब्राम्हण कुल में मूल ग्राम से तात्पर्य यह होता है, की उनके पुरखे इसी गांव के निवासी थे। Sarvepalli Radhakrishnan के पुरखे भी मूलतः सर्वपल्ली गांव के निवासी थे, १८वीं शताब्दी के मध्य में वो तिरुतनी गांव में आकर बस गए थे।  प्राचीन ब्राम्हण कुलों की एक विख्यात परंपरा थी की वे अपने मूल ग्राम को अपना पहचान मानते थे। इसी कारन से राधाकृष्णन के परिजन अपने नाम के पहले सर्वपल्ली धारण करते थे।

इनके पिता सर्वपल्ली वीरास्वामी एक विद्वान ब्राम्हण थे, जिनके ऊपर पुरे परिवार का दायित्व था। वे राजस्व विभाग में काम करते थे। इनकी माता का नाम सीताम्मा था जो की एक कुशल गृहिणी थी। वीरास्वामी दंपत्ति के ५ पुत्र एवं १ पुत्रियों में Sarvepalli Radhakrishnan का स्थान दूसरा था। इनके बाल्यकाल में इनका परिवार आर्थिक दृष्टिकोण से समृद्ध नहीं था जिस कारन, से इन्हे बचपन में किसी तरह की सुख समृद्धि की प्राप्ति नहीं हुई।

शिक्षा


डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन बाल्यकाल से ही बहुआयामी प्रतिभा के धनी होने के साथ साथ मेधावी छात्र थे। इनका परिवार वैसे तो आर्थिक तौर पर मजबूत नहीं था परन्तु , इनकी प्रतिभा को देखते हुए इनके पिता वीरास्वामी ने इनकी पढाई में कोई कमीं नहीं होने दी। इनका परिवार आर्थिक रूप से सुदृढ़ तो नहीं था, लेकिन एक शिक्षित परिवार था। इनके पिताजी भी शैक्षिक व्यक्तित्व के थे।

इनके बाल्यकाल की शिक्षा तो इनके निज ग्राम तिरुतनी में ही हुई। यद्यपि इनका परिवार धार्मिक विचारों को मानने वाला एवं एक रूढ़िवादी ब्राम्हण परिवार था , परन्तु फिर भी इनके पिताजी ने इनका दाखिला आठ वर्ष की उम्र में तिरुपति के क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल में करवा दिया।

विद्याध्यन के क्षेत्र में इनकी प्रतिभा सराहनीय थी। Sarvepalli Radhakrishnan के शिक्षक इनकी प्रतिभा का लोहा मानते थे, Sarvepalli Radhakrishnan हमेशा अपने शिक्षक के प्रिय छात्र रहे। एक संयमित छात्र के रूप में इन्होने अपना जीवन १८९६-१९०० तक तिरुपति के क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल में बितायी। इसके बाद १९०० से  १९०४ तक इनकी शिक्षा वेल्लूर में हुई। १९०२ में इन्होने मेट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और उन्हें इसके लिए छात्रविति भी प्रदान की गयी।

वर्ष १९०४ में कला संकाय की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की, उन्हें मनोविज्ञान, इतिहास एवं गणित में उनके उच्च प्राप्तांकों के कारन विशेष टिपण्णी प्राप्त हुई। उच्च स्तर के अध्ययन के लिए वे मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज, गए वहां से १९०८ में कला स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। उन्होंने यह परीक्षा भी प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की। स्नातक अध्ययन के क्रम में दर्शन शास्त्र उनका मुख्य विषय रहा। उन्हें अपने अध्ययन जीवन में अपने मेधा के कारन कई बार छात्रवृति की प्राप्ति हुई।

क्रिश्चियन कॉलेज मद्रास से भी उन्हें छात्रवृति प्राप्त हुई थी। Sarvepalli Radhakrishnan महज़ बीस वर्ष की उम्र में उन्होंने स्नातकोत्तर की उपाधि लेने के लिए सन १९०८ में एक शोध लेख प्रकशित किया। उन्होंने अध्ययन  के ही दिनों में उन्होंने बाइबिल के महत्वपूर्ण अंश भी याद कर लिए थे। इसके लिए इन्हे विशिष्ट सम्मान भी मिला। सन १९०९ में विषय दर्शन शास्त्र से उन्होंने स्नातकोत्तर (एम्.ए) की उपाधि ली। वे अपने अध्ययन जीवन में अपनी निजी आमदनी के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते थे।

सन १९०९ में ही उन्होंने मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में कनिष्ठ व्याख्याता के तौर पढ़ाना शुरू किया था। इस दौरान उन्हें पढ़ाने के साथ साथ शिक्षण का प्रशिक्षण भी लेना था। उनको अपनी प्रकृति के अनुकूल आजीविका भी मिल गयी। उन्होंने वहां पर ७ वर्षों तक अध्यापन कार्य किया। अपने अध्ययन के ही दिनों में उन्होंने स्वामी विवेकानंद और वीर सावरकर जैसे महान व्यक्तित्व के बारे में पढ़ा। इससे उन्हें बहुत प्रेरणा प्राप्त हुई। उन्होंने हिंदी और संस्कृत जैसे भाषाओँ का भी अध्ययन किया।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन वैवाहिक जीवन – Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Married life


वह भारतीय समाज का एक ऐसा दौर था, जहाँ बालविवाह की परंपरा प्रचलित थी। खास  मद्रास के ब्राम्हण समाज में काम उम्र में ही शादी तय हो जाती थी। Sarvepalli Radhakrishnan की शादी भी मात्र १६ वर्ष की आयु में उनके दूर के रिश्ते में ही तय कर दी गयी। उनकी पत्नी का नाम शिवकामू था। वैसे तो उनकी पत्नी ने किसी प्रकार की आधिकारिक शिक्षा ग्रहण नहीं की थी ,किन्तु उन्हें तेलुगु और अंग्रेजी भाषा का अच्छा ज्ञान था।

सन १९०३ में Sarvepalli Radhakrishnan का विवाह सिवाकामू के साथ करा दिया गया। उस समय इनकी पत्नी सिवकामु की आयु मात्र १० वर्ष थी , इस कारन से उनकी पत्नी ने ३ वर्ष बाद १९०६ से इनके साथ रहना शुरू किया।

१९०८ में जब उन्होंने कला स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की उसी समय Sarvepalli Radhakrishnan दम्पत्ती को प्रथम संतान के रूप में पुत्री की प्राप्ति हुई। उन्हें संतान स्वरूप में ५ पुत्रियां एवं एक पुत्र की प्राप्ति हुई। इनके पुत्र डॉ इस गोपाल भारत के एक जाने-माने इतिहासकारक थे। इन्होने एक शांतिपूर्ण दांपत्य जीवन व्यतीत किया।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन वेदों और उपनिषदों का गहन अध्ध्यन 


अपने शुरूआती शिक्षा के दिनों में वो एक क्रिश्चियन मिशनरी स्कूल में पढ़े थे। जहाँ उन्होंने बाइबिल के महत्वपूर्ण अंश को याद कर लिया था। इसके लिए उन्हें विशिष्ट पुरस्कार की प्राप्ति हुई थी। Dr. Sarvepalli Radhakrishnan भारतीय संस्कृति का एक ऐसा दौर था जब पश्चिमी सभ्यता इस देश के समाज पर अपना गहरा छाप छोर रही थी। अंग्रेजो द्वारा भारतीय संस्कृति को नीचा दिखाया जाता था। क्रिश्चियन मिशनरी स्कूल द्वारा बच्चो को बाइबिल पढ़ाया जाता था, और उन्हें पश्चिमी सभ्यता की महानता बताई  जाती थी। तथाकथित बुद्धिजीवी लोग हिन्दू शास्त्रों एवं इन विचारों को हेय दृष्टि से देखते थे।

Dr. Sarvepalli Radhakrishnan ने यह जानने के लिए की आखिर किस संस्कृति के विचारों में चेतनता है। क्या भारतीय संस्कृति सच में सुदृढ़ नहीं है, अंग्रजों द्वारा सत्य कहा जा रहा है ? इस प्रश्न को चुनौतीपूर्ण तरीके से देखते हुए , उन्होंने हिन्दू वेद एवं उपनिषदों का गहरा अध्ययन किया। उन्होंने स्वामी विवेकानंद एवं वीर सावरकर जैसे प्रकांड विद्वानों के जीवन चरित्र का अध्ध्यन किया।

अंततः वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे की भारतीय संस्कृति की आलोचनाएं निराधार थी। उन्होंने भारतीय संस्कृति एवं हिन्दू समाजों का करीब से अध्ययन किया। उन्होंने भारतीय समाज की सुदृढ़ता को देखा एवं इसका भारत ही नहीं पुरे विश्व में प्रचार प्रसार किया। उन्होंने जाना की हमारी संस्कृति सत्य, प्रेम और विश्वास पर आधारित है, यहाँ हरेक माँ अपने बच्चो को ईश्वर में विश्वास करने , कभी झूठ न बोलने , पाप न करने की शिक्षा देती है।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन अध्यापन कार्य – Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Teaching Work


Sarvepalli Radhakrishnan का अध्यापक जीवन काफी शानदार रहा, वे हमेशा अपने छात्रों के प्रिय शिक्षक रहे। १९०९ में उन्होंने कनिष्ठ व्याख्याता के तौर पर मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज में पढ़ाना आरंभ कर दिया। उन्हें वहाँ पर शिक्षण का प्रशिक्षण भी लेना था।

वहां पर उनके दर्शन शास्त्र के ज्ञान को देखते हुए तत्कालीन प्रोफेसर ने उन्हें कक्षा से अनुपस्थित रहने की स्वीकृति प्रदान कर दी, लेकिन बदले में यह शर्त रखी की तत्कालीन प्रोफेसर के बदले दर्शन शास्त्र की कक्षाओं में पढ़ा दे। वहीँ से १९१२ में उनकी एक लघु पुस्तिका भी प्रकाशित हुई। जिसका शीर्षक ‘मनोविज्ञान के आवश्यक तत्व’ था। १९१६ में प्रशिक्षण ग्रहण करने के बाद उन्हें मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज में ही दर्शन शास्त्र का सहायक प्राध्यापक नियुक्त कर दिया गया।

साल १९१८ में उन्हें मैसूर यूनिवर्सिटी के द्वारा दर्शन शास्त्र के प्राध्यापक के तौर पर नियुक्त किया गया। उन्होंने मैसूर के महाराजा कॉलेज में कई वर्षों तक अध्यापन कार्य किया। अतीत के पन्नों में साल १९२१, मैसूर का प्रतिष्ठित महाराजा कॉलेज, एक भव्य सभागार के बाहर एक बग्गी खरी है। इसे फूलो द्वारा सजाया जा रहा है।  छात्र ये कर तो रहे हैं लेकिन वो खुश नजर नहीं आ रहे, क्यू की उनका प्रिय शिक्षक उनको छोड़कर कलकत्ता यूनिवर्सिटी पढ़ाने जा रहा है।

भाषण एवं अन्य औपचारिकताओं के समाप्त होने के बाद जब शिक्षक सभागार के बहार आते हैं, तो दृश्य देखकर मुस्कुराते हैं। फिर बग्गी से घोड़ो को बंधा न देख चकित हो उठते हैं। छात्र उस बग्गी को स्वयं खींचकर मैसूर के रेलवे स्टेशन तक ले जाने वाले थे। बीच बीच में लोग उस बग्गी को रोककर अध्यापक को प्रणाम कर रहे थे। ये अध्यापक और कोई नहीं बल्कि Dr. Sarvepalli Radhakrishnan थे। १९२१ से उन्होंने कलकत्ता यूनिवर्सिटी में प्राध्यापक के तौर पर सेवा प्रदत्त की।

इसके ५ वर्ष बाद , अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फिलोसोफी की कांग्रेस हुई। इसमें डॉ. राधाकृष्णन भी पहुंचे। अब तक शायद अमेरिका के लोग स्वामी विवेकानंद का वो दौर भूल चुके थे। क्यू की उस बात के लगभग ३३ वर्ष हो गए थे। लेकिन जब डॉ राधाकृष्णन ने पश्चिम की शैली में भारतीय दर्शन को अंग्रेजी में समझाना शुरू किया, तो लोगों को एक साथ तीन बातें याद आयी, स्वामी विवेकानंद, भारतीय संस्कृति एवं स्वामी विवेकानंद के देश से आया ये नौजवान दार्शनिक।

अगले दिन के अमेरिकी अख़बार में हर जगह मुखपृष्ठ पर Sarvepalli Radhakrishnan के बीज वक्तब्यों का जिक्र किया गया। उनकी प्रतिभा का लोहा पुरे विश्व ने स्वीकार किया। उन्हें भारतवर्ष ही नहीं विश्व के कई प्रख्यात यूनिवर्सिटी में लेक्चर देने के लिए बुलाया गया। उसके बाद सन १९३१ से १९३६ तक वे आंध्र विश्वविद्यालय के वाईस चांसलर रहे।

उन्हें पहले ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में लेक्चर देने के लिए बुलाया गया फिर वहां उनको प्राध्यापक नियुक्त कर दिया गया।उन्होंने सन १९३६ से १९३९  तक ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के तौर पर कार्य किया।

१९३९ से १९४८ तक कशी हिन्दू विश्वविद्यालय के चांसलर रहे। १९५३ से १९६२ तक दिल्ली विश्वविद्यालय के चांसलर रहे। साल १९३९ में वे मदन मोहन मालवीय के निमंत्रण पर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के चांसलर बने। यहीं से उनके राजनितिक करियर शुरुआत हुई। उनकी मुलाकात पंडित नेहरू से भी हुई।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन राजनितिक जीवन – Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Political Life


Dr. Sarvepalli Radhakrishnan जी की प्रतिभा के कारण गैर राजनितिक व्यक्तित्व होने के बावजूद भी पंडित नेहरू एवं कई अन्य राजनेता उनके करीबी थे। इन्हें सन १९४७ में संविधान निर्मात्री सभा का सदस्य बनाया गया। भारतीय संविधान को न्याय संगत एवं सुदृढ़ बनाने में इनका अभूतपूर्व योगदान रहा।

१४-१५ अगस्त की रात को जब संविधान सभा का ऐतिहासिक सत्र आयोजित हुआ। उसमें पंडित नेहरू ने Dr. Sarvepalli Radhakrishnan को कहा था की वो अपना भाषण रात के ठीक १२ बजे ख़त्म करें, क्यू की उसके बाद ही पंडित नेहरू के संवैधानिक संसद द्वारा शपथ ली जानी थी। उन्होंने ठीक ऐसे ही किया, ये बात पंडित नेहरू और उनके अलावा किसी को पता नहीं थी।

आजादी के बाद इन्हें रूस में भारतीय राजदूत के तौर पर नियुक्त किया गया। इन्होने एक विशिष्ट राजदूत के तौर पर सोवियत संघ से राजनयिक कार्यों की पूर्ती की। इसके बाद १९५२ में सोवियत संघ से Dr. Sarvepalli Radhakrishnan बुलाकर भारत का प्रथम उपराष्ट्रपति बनाया गया। इस दौरान उन्होंने राज्यसभा के कुशल सभापति के रूप में भारतीय लोकतंत्र में अपनी सेवाएं दी। इसके बाद १३ मई १९६२ को Dr. Sarvepalli Radhakrishnan भारत का द्वितीय राष्ट्रपति बनाया गया, इन्होने १९६७ तक भारत के राष्ट्रपति के रूप में सेवाएं दी।

इनका राष्ट्रपति कार्यकाल काफी चुनौतीपूर्ण रहा, इन्ही के कार्यकाल में भारत का युद्ध पाकिस्तान एवं चीन से हुआ। दो प्रधानमंत्री की मृत्यु हुई। अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के समाप्त होने  बाद वे मद्रास आकर बस गए।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को मिला पुरस्कार :

  • 1938 ब्रिटिश अकादमी के सभासद के रूप में नियुक्ति।
  • 1954 नागरिकत्व का सबसे बड़ा सम्मान, “भारत रत्न”।
  • 1954 जर्मन के, “कला और विज्ञानं के विशेषग्य”।
  • 1961 जर्मन बुक ट्रेड का “शांति पुरस्कार”।
  • 1962 भारतीय शिक्षक दिन संस्था, हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिन के रूप में मनाती है।
  • 1963 ब्रिटिश आर्डर ऑफ़ मेरिट का सम्मान।
  • 1968 साहित्य अकादमी द्वारा उनका सभासद बनने का सम्मान (ये सम्मान पाने वाले वे पहले व्यक्ति थे)।
  • 1975 टेम्पलटन पुरस्कार। अपने जीवन में लोगो को सुशिक्षित बनाने, उनकी सोच बदलने और लोगो में एक-दुसरे के प्रति प्यार बढ़ाने और एकता बनाये रखने के लिए दिया गया। जो उन्होंने उनकी मृत्यु के कुछ महीने पहले ही, टेम्पलटन पुरस्कार की पूरी राशी ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय को दान स्वरुप दी।
  • 1989 ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा रशाकृष्णन की याद में “डॉ. राधाकृष्णन शिष्यवृत्ति संस्था” की स्थापना।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के द्वारा लिखी गयी पुस्तके :

  • द एथिक्स ऑफ़ वेदांत.
  • द फिलासफी ऑफ़ रवीन्द्रनाथ टैगोर.
  • माई सर्च फॉर ट्रूथ.
  • द रेन ऑफ़ कंटम्परेरी फिलासफी.
  • रिलीजन एंड सोसाइटी.
  • इंडियन फिलासफी.
  • द एसेंसियल ऑफ़ सायकलॉजी.

मृत्यु 


आर्यावर्त को विश्व में अलग पहचान दिलाने वाले भारतीय संस्कृति की सुदृढ़ता का प्रचार पुरे विश्व में करने वाले महान आत्मा Dr. Sarvepalli Radhakrishnan का देहांत १७ अप्रैल १९७५ को एक लम्बी बीमारी से जूझने के बाद हुआ।

हालाँकि उनका शरीर तो अब इस भूलोक पर नहीं हैं, लेकिन अपने महान व्यक्तित्व के कारन वे इतिहास के पन्नों में अमर हो गए। उनकी स्मृति आज भी उनके चाहने वालों के दिल में है। ५ सितम्बर को आज भी उनकी याद में पूरा भारतवर्ष आज भी शिक्षक दिवस मनाता है।

भारत सरकार द्वारा प्रतिभाशाली शिक्षकों को उस दिन पुरस्कृत भी किया जाता है। Dr. Sarvepalli Radhakrishnan भारत के पहले राष्ट्रपति थे जिसने शिक्षकों के हित के बारे में सोचा। छात्रों ने इनके जन्मदिवस को राधाकृष्ण दिवस के रूप में मनाने का निश्चय किया था, लेकिन इन्होने अपने जन्म दिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने का आग्रह किया। तब से प्रत्येक वर्ष यह त्यौहार मनाया जाता है। Dr. Sarvepalli Radhakrishnan भारत माता के एक अनन्य सेवक थे, इन्होने देशहित के लिए कई सराहनीय प्रयास किये।

4 कॉमेंट्स

  1. अपने बहुत ही अच्छा लेख लिखा है, आप इसी तरह हमारे साथ अपने ज्ञान को शेयर करते रहिये, थैंक्स

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